लखनऊ और टुंडे कबाब – नवाबी जायका
लखनऊ, यार, वो जगह है जहां इतिहास, संस्कृति और खाना तीनों का मेल होता है। जब बात हो लखनऊ की, तो तुरंत उसकी शाही नवाबी विरासत और मुगली खानपान याद आते हैं। अब लखनऊ में जितनी भी चीज़ें मशहूर हैं, उनमें से एक नाम हमेशा सबसे ऊपर होता है टुंडे कबाब। ये कबाब, जिसे लखनऊ के पुराने बाजारों और गलियों में कहीं न कहीं हर किसी के दिल में जगह बना चुका है, स्वाद के मामले में भी लाजवाब और बनाने के तरीके में भी बेहद खास है। और सबसे बड़ी बात, ये कबाब खाने का एक अनुभव है, ना कि सिर्फ खाना! इसकी शुरुआत तो बहुत पुरानी है। टुंडे कबाब को लेकर लखनऊ में एक अलग ही जुनून देखा जाता है। ये कबाब दरअसल, गलौटी कबाब का एक अलग और और भी लाजवाब वर्शन है। और जब इसे बनाना शुरू करते हैं, तो इसका जो मसालों का कॉम्बिनेशन होता है, वो आपके मुंह में घुलते ही ऐसा अहसास कराता है जैसे कोई जादू हो। यही नहीं, टुंडे कबाब का जो टेक्सचर होता है, वो एकदम मुलायम होता है, जैसे ये मुंह में पिघल जाए। इसे बनाने में जो मेहनत लगती है, वो सिर्फ उसके स्वाद में ही नहीं, बल्कि उसकी विधि में भी दिखती है। टुंडे कबाब के बारे में सबसे दिलचस्प बात यह है कि इसकी एक बहुत पुरानी और खास कहानी है। कहते हैं कि यह कबाब सबसे पहले एक शाही बावर्ची ने एक आदमी के लिए बनाया था, जो हाथ में चोट लगने की वजह से ठीक से मांस नहीं मांस को मसल नहीं पाता था। तब इस कबाब को इस तरीके से तैयार किया गया, कि ये मांस आसानी से मुंह में घुल जाए, बिना किसी परेशानी के। इसका स्वाद इतना बेहतरीन और मसालेदार होता है, कि जो इसे एक बार खा ले, फिर वो पूरी जिंदगी उसे याद करता है। लखनऊ के लोकल ढाबों और रेस्टोरेंट्स में इसे खासतौर पर साग और प्याज के साथ परोसा जाता है। और जब तक आप इसे गरमागरम नहीं खाते, तब तक ये सही अनुभव नहीं मिलता। बस, टुंडे कबाब का हर बाइट एक नया अनुभव होता है, और इसी कारण यह लखनऊ की पहचान बन चुका है।
टुंडे कबाब का इतिहास
लखनऊ के टुंडे कबाब का इतिहास, यार, वाकई बड़ा ही दिलचस्प है। और जब तुम इसके पीछे की कहानी जानोगे, तो समझ पाओगे कि एक खास हुनर और मेहनत से एक शानदार डिश कैसे जन्म ले सकती है। यह कबाब सबसे पहले 1905 में लखनऊ के पुराने इलाके अमीनाबाद में बना था। अब ध्यान से सुनो, इस कबाब का अविष्कार हाजी मुराद अली नामक एक विकलांग बावर्ची ने किया था। मुराद अली का नाम लखनऊ के खाने के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा गया है। वो एक हाथ से कबाब बनाने में माहिर थे, और कहते हैं कि इसी खासियत ने टुंडे कबाब को जन्म दिया। अब यह सोचो, एक आदमी जो एक हाथ से खाना बनाता है, उसने कबाब बनाने की ऐसी कला विकसित की कि वो लखनऊ ही नहीं, पूरे देशभर में मशहूर हो गया। हाजी मुराद अली का टुंडा कबाब बनाने का तरीका बिल्कुल अलग था। उनका जो मसाले का मिश्रण था, वो किसी खास राज की तरह था, जिसे उन्होंने धीरे-धीरे परफेक्ट किया। इस मिश्रण को पकाने की सटीक विधि ने कबाब को एक खास स्वाद दिया जो न सिर्फ उसे अलग बनाता था, बल्कि उसकी पहचान भी बना देता था। हर बार जब हाजी मुराद अली ये कबाब बनाते थे, तो उनका मसालेदार मिश्रण और उनकी कला दोनों ही उस कबाब में समाहित हो जाती थी, जिससे उसका स्वाद हमेशा एक जैसा रहता। एक हाथ से बनाये गए कबाब की जो मुलायमियत और स्वाद था, वो हर खाने वाले को लाजवाब अहसास दिलाता था। इस तरह से टुंडे कबाब ने लखनऊ की शाही खानपान परंपराओं में अपनी जगह बना ली और आज भी वो स्वाद वैसा का वैसा ही है। मुराद अली ने न सिर्फ कबाब बनाने की तकनीक सिखाई, बल्कि उन मसालों को एक अलग स्तर पर पहुंचाया। और आज, जब लखनऊ में किसी को टुंडे कबाब का नाम सुनाई देता है, तो वो सीधे इस शाही इतिहास से जुड़ जाता है।
टुंडे कबाब – मुलायम और मसालेदार स्वाद का राज
टुंडे कबाब का स्वाद वास्तव में हर किसी के दिल को छूने वाला होता है। यह कबाब खासतौर पर मटन के कीमे से तैयार किया जाता है, और इसे बनाने में करीब 160 से ज्यादा देसी-विदेशी मसालों का मिश्रण किया जाता है। इन मसालों के सही अनुपात में मिलाने से यह कबाब अन्य किसी कबाब से बिल्कुल अलग और खास बन जाता है।
कैसे बनाया जाता है?
• मटन के कीमे की तैयारी: टुंडे कबाब बनाने की शुरुआत होती है मटन के कीमे से। मटन के कीमे को पपीते के पेस्ट के साथ मिलाकर मैरीनेट किया जाता है। पपीते में प्राकृतिक एंजाइम होते हैं जो मांस को मुलायम बना देते हैं, जिससे कबाब का टेक्सचर न केवल मुलायम बल्कि नरम भी हो जाता है।• मसाले का मिश्रण: मटन के कीमे में खास मसाले मिलाए जाते हैं। इन मसालों में इलायची, जायफल, जावित्री, गुलाब जल, केवड़ा और अन्य देसी मसाले शामिल होते हैं। इन मसालों की खुशबू और स्वाद टुंडे कबाब को एक अलग ही पहचान देते हैं।
• पकाने की विधि: तैयार मिश्रण को घी में धीमी आंच पर तवे पर पकाया जाता है, जिससे इसका स्मोकी फ्लेवर आता है और यह पूरी तरह से पक कर मुलायम हो जाता है। घी का उपयोग न केवल स्वाद को बढ़ाता है बल्कि इसे एक बेहतरीन टेक्सचर भी देता है।
टुंडे कबाब की खासियत
नाम का महत्व: टुंडे कबाब का नाम "टुंडे" इसलिए पड़ा क्योंकि इसे सबसे पहले एक विकलांग (टुंडा) बावर्ची ने तैयार किया था। कहा जाता है कि इस बावर्ची का एक हाथ नहीं था, फिर भी उसने अपनी कला और अनुभव से एक ऐसा कबाब तैयार किया जो आज भी लोगों के दिलों में बसा हुआ है।
मसाले और स्वाद: टुंडे कबाब में इतने सारे मसाले डाले जाते हैं कि हर बाइट में अलग ही स्वाद महसूस होता है। इसकी खुशबू और स्वाद आपकी स्वाद कलियों को पूरी तरह से संतुष्ट करता है।
टेक्सचर: यह कबाब इतने मुलायम होते हैं कि बिना ज्यादा चबाए ही मुंह में पिघल जाते हैं। इसकी नरमाई और मसालेदार स्वाद का अनोखा मिश्रण इसे और भी खास बनाता है।
लखनऊ का नवाबी खानपान
लखनऊ का खानपान किसी भी खाने के शौकीन के लिए स्वर्ग से कम नहीं है। यहां की खाने की संस्कृति शाही और समृद्ध है, और टुंडे कबाब उसका एक अहम हिस्सा है। लखनऊ में नवाबों के समय से लेकर अब तक खानपान का स्तर लगातार ऊंचा रहा है, और इस शहर ने भारतीय भोजन की दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाई है।
लखनऊ में आपको न सिर्फ टुंडे कबाब बल्कि कई प्रकार के अन्य मुग़लई और अवधी व्यंजन भी मिलते हैं, जिनमें निहारी, कोरमा, कबाब, बिरयानी और हलवा प्रमुख हैं। टुंडे कबाब यहां के खानपान का प्रतीक बन चुका है।
स्मृति और संस्कृति
लखनऊ के लोग अपनी खाने की संस्कृति पर गर्व करते हैं, और टुंडे कबाब को उनकी सांस्कृतिक धरोहर माना जाता है। टुंडे कबाब का स्वाद जितना लाजवाब है, उतना ही यह यहां के इतिहास और संस्कृति से भी जुड़ा हुआ है। इसे लखनऊ के कई बाजारों और विशेष रूप से 'टुंडे कबाब वाले' के प्रतिष्ठानों में बेचा जाता है। यह कबाब न केवल लखनऊ के नागरिकों के दिलों में बल्कि पर्यटकों के दिलों में भी एक विशेष स्थान रखता है।
लखनऊ के नवाबी खानपान की पहचान, टुंडे कबाब, हर नॉन-वेज लवर के लिए एक स्पेशल ट्रीट है। अगर आप लखनऊ जाएं, तो इसका जायका जरूर लें!
📢 क्या आपने कभी टुंडे कबाब का स्वाद लिया है? आपका अनुभव कैसा रहा? हमें कमेंट में बताएं!